Durga Saptshati Path Vidhi – दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

सनातन धर्म में मुख्यत: पांच उपास्य-देव माने गए हैं- सूर्य, गणेश, दुर्गा, शंकर और विष्णु, परंतु कलियुग में दुर्गा और गणेश का विशेष महत्व है, ‘कलौ चण्डी विनायकै।’ मां दुर्गा परमेश्वर की उन प्रधान शक्तियों में से एक हैं जिनको आवश्यकतानुसार उन्होंने समय-समय पर प्रकट किया है।
उसी दुर्गा शक्ति की उत्पत्ति तथा उनके ‍चरित्रों का वर्णन मार्कण्डेय पुराणांतर्गत देवी माहात्म्य में है। यह देवी माहात्म्य 700 श्लोकों में वर्णित है। यह माहात्म्य ‘दुर्गा सप्तशती’ के नाम से जाना जाता है।दुर्गा शक्ति का रूप है –
या देवि सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं, जिसमें 700 श्लोकों में देवी-चरित्र का वर्णन है। मुख्य रूप से ये तीन चरित्र हैं,
प्रथम चरित्र (प्रथम अध्याय),
मध्यम चरित्र (2-4अध्याय) और
उत्तम ‍चरित्र (5-13 अध्याय)।
प्रथम चरित्र की देवी महाकाली,
मध्यम चरित्र की देवी महालक्ष्मी और
उत्तम ‍चरित्र की देवी महासरस्वती मानी गई है।
यहां महाकाली की स्त‍ुति मात्र एक अध्याय में,
महालक्ष्मी की स्तुति तीन अध्यायों में और महासरस्वती की स्तुति नौ अध्यायों में वर्णित है।
“जो ज्ञान की देवी मां सरस्वती की वरिष्ठता, काली (शक्ति) और लक्ष्मी (धन) से अधिक सिद्ध करती है।”
श्री दुर्गा सप्तशती
श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ करने का अलग विधान है। कुछ अध्यायों में उच्च स्वर, कुछ में मंद और कुछ में शांत मुद्रा में बैठकर पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है। जैसे कीलक मंत्र को शांत मुद्रा में बैठकर मानसिक पाठ करना श्रेष्ठ है। देवी कवच उच्च स्वर में और श्री अर्गला स्तोत्र का प्रारम्भ उच्च स्वर और समापन शांत मुद्रा से करना चाहिए। देवी भगवती के कुछ मंत्र यंत्र, मंत्र और तंत्र क्रिया के हैं। संपूर्ण दुर्गा सप्तशती स्वर विज्ञान का एक हिस्सा है।
वाकार विधि:
प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है।
संपुट पाठ विधि:
किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है, परन्तु यह विधि अति फलदायी है। अच्छा यह होगा कि आप संपुट के रूप में अर्गला स्तोत्र का कोई मंत्र ले लीजिए या कोई बीज मंत्र जैसे ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं दुर्गायै नम: ले लें या ऊं दुर्गायै नम: से भी पाठ कर सकते हैं।
नवरात्र पूजा विधि
सर्वप्रथम- देवी भगवती को प्रतिष्ठापित करें। कलश स्थापना करें। दीप प्रज्ज्जवलन करें। ( अखंड ज्योति जलाएं यदि आप जलाते हों या जलाना चाहते हों )
ध्यान- सर्वप्रथम अपने गुरू का ध्यान करिए। उसके बाद गणपति, शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी और नवग्रह का।
पाठ विधि
संकल्प- श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले भगवान गणपति, शंकर जी का ध्यान करिए। उसके बाद हाथ में जौ, चावल और दक्षिणा रखकर देवी भगवती का ध्यान करिए और संकल्प लीजिए…हे भगवती मैं…..( अमुक नाम)….सपरिवार…( अपने परिवार के नाम ले लीजिए…)…गोत्र.( अमुक गोत्र)….स्थान ( जहां रह रहे हैं)… पूरी निष्ठा, समर्पण और भक्ति के साथ आपका ध्यान कर रहा हूं। हे भगवती आप हमारे घर में आगमन करिए और हमारी इस मनोकामना… ( मनोकामना बोलें लेकिन मन ही मन) को पूरा करिए। श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ, जप ( माला का उतना ही संकल्प करें जितनी नौ दिन कर सकें) और मेरे द्वारा किए जाने वाले यज्ञादि को स्वीकार करिए, कहीं भी किसी तरह की कोई भूल- चूक हो जाएं तो कृपया माफ करना, इसके बाद धूप, दीप, नैवेज्ञ के साथ भगवती की पूजा प्रारम्भ करें।
श्रद्धा के साथ मां जगदम्बा का किया गया किसी भी प्रकार का गुणगान/भजन/ किरतन/पाठ/ स्त्रोत/ मंत्र जप/ अनुष्ठान/ यज्ञ आदि कभी खाली नहीं जा सकता ।

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